कोरोना, नो रोना ।

 कोरोना, नो रोना ...




आपको सुनकर अजीब लगेगा, पर यह हकीकत है . बदलते समय के प्रभाव ने मृत्यु पर भी हमारी संवेदनाओं के स्वर धीमे कर दिए . अब देखिये न कल बगल वाले चचा गए अब किसका नंबर आएगा कहना मुश्किल है . बहुत विचित्र समय आ गया है सुबह चचा जी की अर्थी उठी नहीं थी कि शाम उनके यहाँ फिर रोना शुरू हो गया . 

हमने पहले गणित के प्रश्न हल करते समय अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा सुना था . अब तो डेल्टा कहर बनकर टूट रहा है अभी फाय और साय बांकी है . अब तो लोग भगवान् के पास भी नहीं जाते क्योंकि स्वर्ग में जगह फुल है . यमराज ने साफ़ मना कर दिया है जब तक ब्रह्मा जी नए वार्ड का निर्माण नहीं कर लेते . 

हो भी क्यों नहीं लोगों ने दूसरे जीव को बहुत कष्ट दिया है, यहाँ तक कि जानवरों का भी खाना हज़म कर लिया . बेचारे सोच रहे हैं मैं इंसान तो नहीं ! पर भगवान् की शिव की नंदी एकदम खुश है जब वह अपने समान सबको मुंह में जाबी लगाए देखता है . मन ही मन सोचता है चलो अपना यार तो मिला . जब किसी को रोते देखती है तो धीरे से कहती है मैं तो अपने बच्चों को प्रतिदिन रोते देखती हूँ जब उसे तुम इंसान हमसे अपने क्षुधा की शान्ति के लिए उसे मुझसे दूर करते हो . फिर आज काहे को रोना .... हे मानव कोरोना ...नो रोना ...   

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