मैं हूँ दिल्ली
मैं हूँ दिल्ली
दरख्त प्राचीर से झाँक झाँक,
बयां कर रहा है अहले साँझ..
समेट रक्खा है कई वर्षों तक,
जिसने हार जीत का प्रयाण.
देखा है कई नृप महान
उठा तृणमूल से बना नराण
कुरुक्षेत्र है इसका प्रमाण.
वीरांगनाओं की शौर्य गाथा,
जुबान पर होना है इसका प्रमाण.
अट्टालिका कर रही इशारा
यहां कभी हुआ था नवनिर्माण,
काल चक्र ने करवट बदल दिखाया,
विप्रलंभ सा हाहाकार मचान...
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे और मजार,
बना रहा जीवन गुलजार..
नृपालय से आती सिसकियाँ,
बयां कर रहा है जीवन पंचांग.
मैं हूँ दिल्ली, मैं हूँ दिल्ली....
वेदालय की अग्नि परिक्षा,
हस्तिनापुर की जीवट इच्छा..
कौरव-पांडव का घमासान,
ना जाने कितने गए असमय श्मशान...
इंसान को लाशों से खेलते देखा
मचान बना नर मुंड और
धर को बना जमीन का खम्भा...
शोणित से रंगे हाथ और
टूटी हड्डियों की जमात
बरअक्स खींच लेते ध्यान अकस्मात...
अपने को मान लिया सम्राट,
ले अपने साथ भारी उपाधियाँ,
सभी को दे अपने प्राचीर में स्थान
तनिक भी नहीं उसका गुमान
सम्राटों को बनते देख
प्रजा का बनता राज्य स्नेह
राजधर्म से ओत प्रोत
दिखा जीवन का स्नेह जोत
जला जीवन का ज्योति दीप
दे जीव को ज्ञान ज्योत
मिटा तिमिर दे ज्ञान कोष
मैं हूँ दिल्ली, मैं हूँ दिल्ली....
लाल किला की प्राचीर है वर्षों का गवाह
यहां ना जाने कितने हुए शब्दों का प्रवाह
किसी को मिला पुश्तैनी विरासत अथाह
कोई बनाया अपने सपनों को सच निगाह...
सिंह गर्जना बता रहा अपने काल का प्रचार
दर्द कितना छुपा पथ पर कुंडली मार बार बार
कितना बदल गया जीवन कौंध रहा बार बार
आसपास की प्रतिध्वनि कर रहा है शर्मशार
कहाँ गया नवरत्न की टोली कहाँ गया मियां मल्हार
संस्कृति के अध्याय जैसे खो गया है राज़दार
हंस हंस कर प्रकृति कहती खोजो विप्लव का प्रकार
मैं हूँ दिल्ली, मैं हूँ दिल्ली...
तलवारों की धार पर नाचते शूर वीर
अरावली की ओट में बैठी विशाल पीर
महानायक पृथ्वीराज सा धीर गंभीर
लिख विजय गीत सम्भाला हिंद प्राचीर..
देख यमुना की प्रवाह यम को इच्छा हुई अबाध
पैर उसके रुक परे जब जल बास से हुई प्रमाद
योगमाया के प्रांगण से रह रह कर आती आवाज
उठो जागो और बढ़ो देखो अपने अतीत की बयार
लौह खम्भ याद दिलाता चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का काल
कैसे शोणित से हो जाती धरा हमारी लाल लाल
माथे पर बैठा अपना मान देख गगन का अस्तगाम
जंतर मंतर दे
रहा प्रति क्षण प्रति
पल का ध्यान
नवेन्दु सदा ही
खोजता नित प्रवीणता का प्रमाण
परञ्च प्राचीर निजाम का याद दिलाता मानव ज्ञान
मैं हूँ दिल्ली, मैं हूँ दिल्ली...
कुमार विक्रमादित्य
माध्यमिक शिक्षक
कृष्णा नगर
वार्ड नंबर --22
सहरसा बिहार
भारत 852201
kvikramwriter@gmail.com
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