मैं हूँ दिल्ली दरख्त प्राचीर से झाँक झाँक , बयां कर रहा है अहले साँझ .. समेट रक्खा है कई वर्षों तक , जिसने हार जीत का प्रयाण . देखा है कई नृप महान उठा तृणमूल से बना नराण कुरुक्षेत्र है इसका प्रमाण . वीरांगनाओं की शौर्य गाथा , जुबान पर होना है इसका प्रमाण . अट्टालिका कर रही इशारा यहां कभी हुआ था नवनिर्माण , काल चक्र ने करवट बदल दिखाया , विप्रलंभ सा हाहाकार मचान ... मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे और मजार , बना रहा जीवन गुलजार .. नृपालय से आती सिसकियाँ , बयां कर रहा है जीवन पंचांग . मैं हूँ दिल्ली , मैं हूँ दिल्ली .... वेदालय की अग्नि परिक्षा , हस्तिनापुर की जीवट इच्छा .. कौरव - पांडव का घमासान , ना जाने कितने गए असमय श्मशान ... इंसान को लाशों से खेलते देखा मचान बना नर मुंड और धर को बना जमीन का खम्भा ... शोणित से रंगे हाथ और टूटी हड्डियों की जमात बरअक्स खींच लेते ध्यान अकस्मात ... अपने को मान लिया सम्राट , ले अप