जीवन हुंकार
जीवन हुंकार (राम धारी सिंह दिनकर )
बारदोली के सत्याग्रह ने विवश किया एक धीर
उठा कलम के क्रंदन ने लिख डाला विजय पीऱ ,
प्रणभंग रेणुका ने हुंकार भरी,रसवंती ने गाया द्वन्द्गीत
कुरुक्षेत्र की धुप छाँह ने सामधेनी को किया विवश।
बापू ने रोया इतिहास के आंसू
पर धुप और धूवाँ ने लिया मिर्च का मजा ,
रश्मिरथी दिल्ली चला ,
नीम के पत्ते ने नील कुसुम से रचाया ,
सूरज का ब्याह ।
चक्रवाल ने कवि श्री को किया सीपी शंख से सम्मान,
तभी ये क्या !
नए सुभाषित लोकप्रिय कवि दिनकर हो गए उर्वशी के वश में ,
परञ्च परशुराम की प्रतीक्षा ने आत्मा की आँखें खोली
और ,कोयला और कवित्व दोनों ने लगाया मृत्ति तिलक।
दिनकर की सूक्तियों ने गाया हारे को हरिनाम
संचियता दिनकर के गीत को ले गया रश्मिलोक
देखती रही अन्य श्रृंगारिक कवितायेँ
पर नकार न सकी वह अटल सत्य अटल सत्य।
याद् आया उन्हें चले मिटटी की ओर
चित्तोर के साका ने दिखाया
अर्धनारीश्वर को रेती के फूल
हमारी सांस्कृतिक एकता ही बताती है भारत की सांस्कृतिक कहानी
होते हैं संस्कृति के चार अध्याय और निकलती है उससे उजली आग।
देश विदेश क्या, राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता बताती है काव्य की भूमिका ,
पंत प्रसाद और मैथिलीशरण ,विचरते हैं वेणुवन।
धर्म नैतिकता और विज्ञान, का ज्ञान देता है हमें वट पीपल
लोकदेव नेहरू, ने कभी की थी, शुद्ध कविता की खोज ,
साहित्य मुखी, राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी, के मुख से निकला हे राम !
संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ रचती रही भारतीय एकता ,
मेरी यात्राएं और दिनकर की डायरी जगती रही चेतना की शिला
विवाह की मुसीबतें ने कराया हमें आधुनिक बोध
आने वाला हरेक क्षण बीतेगा उनकी स्मृति में स्मृति स्मृति में।
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